Divine Durga Spiritual Astrology
Thursday, April 27, 2023
जीवन की गणित
Thursday, March 16, 2017
साधना में सिद्धि रहस्य
मुझे कल रात को ही एक भाई की कॉल आई , साधना की जिज्ञासा के सन्दर्भ में जब उन भाई जी ने बताया तो उनका कहना था कि "पिछले 7 वर्षों से वह आध्यात्मिक विधाओं के प्रति सतत निरंतर अभ्यास रत होते हुए भी उसको अभी तक कोई विशेष अनुभूति नहीं हुई है ।
अक्सर ये हाल बहुत से जिज्ञासुओं का है जो कहते हौं कि बहुत से सिद्ध पंडित से मिल लिए ,बहुत से विधान कर लिए लेकिन अनुभूति के नाम पर कुछ भी हासिल नहीं हुआ ।
ऐसे जिज्ञासु साधकों के लिए मैं कुछ स्वानुभूत अनुभव बताना चाहूंगा ।
जरुरी नहीं कि मेरे यह अनुभव आपको सही मार्ग पर ले चलें लेकिन हो सकता है आप भी इन्ही किसी अनुभव के आधार पर अपनी गलती सुधार सकें।
1. एक इष्ट की उपासना करें ।
अक्सर भटकाव का मुख्य कारण यही होता है कि साधना और अध्यात्म मार्ग पर नयन साधक बहुत जल्दी अपने आस पास के अन्य साधकों अथवा किसी अमुक देवी देवता की क्षमताओं का वर्णन सुन कर उसी देवी देवता अथवा साधक की देखा देखी में हर समय अपना इष्ट बदलते रहता है । 2 -4 दिन दुर्गा को पूजा फिर शिव को , कभी काली को , कभी किसी को तो कभी किसी को । और ऐसा करते करते जब अनुभूति नहीं होती है तो साधक विचलित होने लगता है ।
एक बात हमेशा ध्यान रखिए कि जो व्यक्ति बार बार सिम बदलता है उसे विश्वसनीय नहीं कहा जाता है । ऐसे ही साधना और अध्यात्म में भी यही नियम लागू होता है । साधना मार्ग में कदम रखने से पहले अपनी अंतरात्मा से यह निश्चित कर लें कि कौन से देवता के प्रति आपके हृदय में सर्वाधिक सम्मान है ।
याद रखिए , साधना के अंतिम पड़ाव में शक्ति सिर्फ और सिर्फ 1 है । अतः प्रारम्भ भी एक इष्ट से कीजिये और यकीन मानिए कि एक इश्वर की निरंतर साधना करते रहने से आपको वही एक देवता आपको समस्त सिद्धियां देने में सक्षम हो जायेगा जो भी एक जीवन में आप सोचते हैं ।
2. रोज का एक नियम बनाकर साधना करें ।
अक्सर हम साधना मार्ग में जल्दी जल्दी ही सब कुछ प्राप्त करना चाहते हैं । कोई 11 दिन कोई 21 दिन की साधना के नाम पर बैठ कर जब अंत में कुछ हाथ नहीं लगता है तो वह विचलित हो उठता है ।
मित्रों , साधना और सिद्धि कोई हलवा नहीं है जो 21 दिन या 31 दिन में सिद्ध हो जाये । साधना एक सतत निरंतर चलने वाली रूपांतरण की प्रक्रिया है । और इस प्रक्रिया में सबसे आवश्यक है कि अपना एक नियम बाँध लें कि एक निश्चित समय में आप सारे काम छिड़ कर अपने इष्ट के सम्मुख बैठ कर उनसे संबंधित मन्त्र , जप , कवच , स्तोत्र का नियमित रोज पाठ करें ।
जितना आपका धैर्य प्रगाढ़ होता जाएगा आपको प्रत्येक सिद्धि चरणबद्ध रूप से मिलने लग जाएगी ।
3. स्वयं को पढ़ने का प्रयास करें ।
हम अक्सर दुसरे व्यक्तित्व को देख कर या तो प्रभावित होते हैं अथवा निराश होते हैं और लगभग सम्पूर्ण जीवन हमारा या तो किसी के प्रभाव में बीत जाता है अथवा किसी को देख कर निराशा में बीत जाता है ।
एक साधक का पहला काम यही होना चाहिए कि वह रोज अपने को देखे , अपने व्यक्तित्व को बेहतर बनाने के सम्पूर्ण प्रयास करे । याद रखिए मित्रों , जितना हम स्वयं के नजदीक जाते हैं उतना ही हम अस्तित्व के करीब जाते हैं ।
4. सजग होकर सहज रहने का प्रयास करें ।
सजगता का सीधा अर्थ है कपट क्षल रहित चरित्र का निर्माण करें और आ जैसे भी हैं स्वयम को प्रेम करना सीखें , यहीं प्रेम सहजता में बदलने लगेगा ।
सहजता और सजगता को बढ़ाने का सबसे सरल उपाय है कि अपने इष्ट के सम्मुख बैठ कर , जो भी आपको इस जीवन में मिला है उसके लोए परमेश्वर का धन्यवाद करें , और उसकी कृपा के आकांक्षी हो कर उस परमात्मा को अपने भीतर महसूस करें ।
Tuesday, March 14, 2017
नील सरस्वती साधना
मित्रो जैसे की आप सभी जानते ही है ज्ञान विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती जी है .. है ना ?आज में इसी विषय में आप को एक रोचक जानकारी देना चाहता हूँ ..की सरस्वती कितनी है????मेरे गुरुवर ने अभी तक मुझे केवल आठ सरस्वती के साधना व् ज्ञान दिया है .. अब यह कोण सी सरस्वती है?
१ सरस्वती जो ब्रह्मा पत्नी है ..
२ घट सरस्वती
३ किणी सरस्वती
४ ब्रह्म सरस्वती
५ वेद सरस्वती
६ गर्भ सरस्वती
७ अंतरिक्ष सरस्वतीऔर अंतिम व् सर्व शक्ति सम्पन्न सहस्त्र सहस्त्र सरस्वती भी जिनकी गुणों की बखान करने में असमर्थ है ..समस्त सृष्टी जिसके गुण गान करते नहीं थकते उस परब्रह्म स्वरूपी माँ का नाम है
8. नील सरस्वती
.....यह एक ऐसी साधना है जिसे सम्पन्न कर एक मुर्ख भी महान बन सकता है और वोह भी बहुत ही कम समय पर ..ऐसे व्यक्ति इस दिनया का श्रेष्ठ कवी हो सकता है श्रेष्ठ गायक हो सकता है श्रेष्ठ कलाकार श्रेष्ठनृत्य बादक रचना कार श्रेष्ठ पंडित ..पता नहीं क्या क्या कर देती है भगवती अपने साधक पर खुश जाय तोह .. आप काली दास , रवि दास . तुलसी दास. वाल्मीकि .. व्यास देव जैसे अत्यंत गुनी शास्त्र रचयिता भी बन सकते है इसी साधना के द्वारा ...में स्वं ही असमर्थ हूँ भगवती के विषय में क्या क्या लिखूं ..? एक शब्द में कहने की अगर दुस्साहस करू तोह इतना ही कहना चाहूँगा की सहस्त्र सहस्त्र सरस्वती का शक्ति की एक ही रूप नील सरस्वती है .. हे माँ तेरे इस स्वरुप को में साष्टांग प्रणाम करता हूँबस आप इतना जान लीजिये भगवती की कृपा से आप को अनंत ज्ञान ,ऐश्वर्य ,धन ,मान, सम्मान ,पद, प्रतिष्ठा की प्राप्ति होगीइस साधना को करने से पहले आप को एक बात बताना अनिवार्य समझता हूँ में .. और वोह है इनकी साधना में बिना कारन (शराब )के सम्पूर्णता प्राप्त की ही नहीं जा सकती .. नील सरस्वती की साधना में यह अनिवार्य है की साधक कारन युक्त हो कर ही साधना में बैठे ..( कुछ विद्वान मेरे इस विचार का विरोध भी कर सकते है और आज की नहीं आदि काल से होता आ रहा है हमारा विरोध )पर आप लोगो में बहुत सरे जैन है कोई शाकाहारी है कोई दक्षिण मार्गी वैष्णव .. आप लोग तोह कारण पान कर ही नहीं सकते इस से आप का धर्म नस्ठ हो जाता है..तोह क्या यह साधना सम्पन्न नहीं कर पाएंगे ? अवस्य करेंगे और वोह भी भगवती से पूर्ण सफलता का प्रमाण के साथ .. तोह इसका उपाय क्या है ?मित्रो आप साधना के दिन सुबह् दुकान से 2 5 0 ग्राम गुड़ व् 1 0 0 ग्राम अदरख पिस कर 1 लीटर पानी में तब तक उबालते रहिये जब तक की पानी 1 /3 ना हो जाए .. जब यह तैयार हो जाय तोह आप इसी को कारन( शराब ) की जगह प्रयोग कर सकते है ... हो गया ना हमेशा के लिए इस समस्या से छुटकारा ..?अब ज्यादा पोस्ट को लम्बा खिंच कर कोई फायदा नहीं ..:)
सामग्री ------------वस्त्र आसनी -लाल ..आसन -पद्म या असुविधा हो तोह सिद्ध आसन .. क्योंकि बहुत लोगो को घुटने में दर्द होता हैमाला -नर अस्थि , सर्प अस्थि , या फिर रुद्राक्ष कीअक्षत से लेकर पुश्प्तक सभी सामग्री लाल ..जप संख्या . प्रतिदिन 125 मालादिशा दक्षिण ..समय महा निशा व् ब्रह्मा मुहूर्त ..लगातार 2 1 दिन तक ;;दिन शनि वार मंगल वार अष्टमी या कोई भी शुभ दिन में कर सकते है .एक मीटर का लाल कपडा बजोट पर विछाने के लिएकुंकुमतिन दीपक और एक आटे से निर्मित चार मुखी दीपकसरशो का तेल .. दीपकमे जोबत्ति लगायेंगे वोह भी लाल रंग से रंग देना हैव अन्य सामान्य पूजन सामग्री ...विधान ----जिस दिन साधना शुरू करे उसी दिन अपनी माता या किसी उम्र में बड़ी स्त्री की या कुमारी कन्या की आशीर्वाद अवस्य लेना है यह अनिवार्य है .साधना के समस्त प्रांभिक क्रियाय सम्पन्न करके गुरु गणेश भैरव शिव शक्ति पूर्वज की आज्ञा व् आशीर्वाद ले ..अब आप संकल्प लेकर साधना शुरू करे ...कारन की तिन प्याली ले ले (कारन शोधन करना अनिवार्य है)दक्षिण दिशा में मुहं कर आसन लगाके बजोट पर लाल वस्त्र विछाय और वस्त्र पर अग्रांकित यन्त्र की रचना करे ..यन्त्र के तीन कोणों में जहां स्टार बने हैं वहांएक एक चावल की ढेरी स्थापित करे मध्य में लाल पुष्प की ढेरी ..सबसे पहले ऊपर की कोण के चावल की ढेरी परमगुरु देव का ध्यान कर आव्हान कर एक दीपक की स्थापना करेफिर दायें और उच्छिस्ट गणेश की ध्यान कर दीपक की स्थापना करे .. फिर बायी ओर के ढेरी पर अक्षोभ्य काल पुरुष का ध्यान कर दीपक की स्थापना करे।।दिपकों का मुख चित्रानुसार केंद्र की ओर केंद्रित होगा।मध्य में आटे से बना दीपक को भी भगवती की नाम लेके स्थापित कर दे ..इन दीपक का भी संक्षिप्त पूजन करे ..अब आप एक एक अनार निम्न मंत्र के उच्चारण के साथ गणेश जी व् अक्षोभ पुरुष को काट कर बली दे .
.ॐ गं उच्छिस्ट गणेशाय नमः भो भो देव प्रसिद प्रसिद मया दत्तं इयं बलिं गृहान हूँ फट ..ॐ भं क्षं फ्रें नमो अक्षोभ्य काल पुरुष सकाय प्रसिद प्रसिद मया दत्तं इयं बलिं गृहान हूँ फट .
.अब आप इस मंत्र की एक माल जाप करे ..॥क्षं अक्षोभ्य काल पुरुषाय नमः स्वाहा॥
फिर आप निम्न मंत्र की एक माला जाप करे ..॥
ह्रीं गं हस्तिपिशाची लिखे स्वाहा॥इन मंत्रो की एक एक माला जाप शरू में व् अंत में करना अनिवार्य है क्यों नील तारा देवी के बीज मंत्र की जाप से अत्यंत भयंकर उर्जा का विस्फोट होता है शरीर के अंदर .. ऐसा लगता है जैसे की आप हवा में उड़ रहे हो .. एक हि क्षण में सातो आसमान के ऊपर विचरण की अनुभति तोह दुसरे ही क्षण अथाह समुद्र में गोता लगाने की .. इतना उर्जा का विस्फोट होगा की आप कमजोर पड़ने लग जायेंगे आप केशारीर उस उर्जा का प्रभाव व् तेज को सहन नहीं कर सकते इस के लिए ही यह दोनों मात्र शुरू व् अंत मेंएक एक माला आप लोग अवस्य करना .. नहीं तोह आप को विक्षिप्त होने से स्वं माँ भी नहीं बचा सकती ..इस साधना से आप के पांच चक्र जाग्रत हो जाते है तोह आप स्वं ही समझ सकते हो इस मंत्र में कितनी उर्जा निर्माण करने की क्षमता है .. एक एक चक्र कोउर्जाओ के तेज धक्के मार मार के जागते है ..अरे परमाणु बम क्या चीज़ है भगवती की इस बीज मंत्र केसामने ?सब के सब धरे रह जायेंगे .
.मूल मंत्र-॥स्त्रीं ॥ ॥ STREENG ॥
जप के उपरांत रोज देवी के दाहिने हात में समर्पण व् क्षमा पार्थना करना ना भूले ..साधना समाप्त करने की उपरांत यथा साध्य हवन करना.. व् एक कुमारी कन्या को भोजन करा देना ..अगर किसी कन्या को भोजन करने में कोई असुविधा हो तोह आप एक वक्त में खाने की जितना मुल्य हो वोह आप किसी जरुरत मंद व्यक्ति को दान कर देना ...भगवती आप सबका कल्याण करे ..भगवती ही सत्य है ..उसकी ज्ञान ही सत्य है ..
ज्योतिषियों के लिए चमत्कारी वाकसिद्धि साधना
ज्योतिष में फलित का कार्य एवं कथा वक्ताओं के लिए वाक् सिद्धि दायक एक प्रबल साधना बता रहा हूँ ।
शक्ति उपासना में सरस्वती जी को वाक् सिद्धि प्रदाता माना गया है और सामान्यतः शकरि के इस रूप की साधना सनातन परंपरा में विधा आरम्भ से ही कराई जाती है ।
लेकिन मित्रों आपको जो साधना मैं बताने जा रहा हूँ यह जगतमाता के गण भैरव जी का अत्यंत प्रभावशाली वाकसिद्धि प्रदान करने वाला सिद्ध मन्त्र साधना है ।
भगवान् भैरव को भय का हरण करने वाला देव माना जाता है , किन्तु बहुत कम लोगों को ज्ञात है कि भगवान् भैरव की कृपा से साधक को चमत्कारी वाक् सिद्धि भी मिलती है ।
वाक् धारी भैरव साधना - यह साधना 11 दिन की है ।
इस साधना को किसो भी रविवार या फिर पूर्णिमा के दिन प्रारम्भ किया जा सकता है ।
सामग्री - लाल आसान , रुद्राक्ष की माला , भैरव् दीपक (मिट्टी का ) भगवान् भैरव का विग्रह (लोहे का त्रिसूल अथवा कागज़ या भोजपत्र पर लाल स्याही से स्वयं एक त्रिसूल बना कर उसे अपने सम्मुख रखें )
भोग के लिए प्रत्येक दिन 1 बेसन का लड्डू , 1 मीठा पान , 1 अनार ।
गणेश , दुर्गा , शिव , गुरु पूजन करने के उपरान्त भगवान् भैरव का आह्वाहन करें और बाबा को बेसन के लड्डू ,1 मीठा पान और 1 अनार का भोग लगाएं ।
तदोपरान्त रुद्राक्ष की माला से निम्न मंत्र की 5 से 7 माला अथवा अपनी क्षमता अनुसार जाप करना आवश्यक है ।
मन्त्र- ॐ बं बटुकाय वाकसिद्धाय कुरु कुरु बटुकाय बं ।।
जाप पूर्ण होने के बाद जो मीठा पान बाबा भैरव को भोग में चढ़ाया था उसको खा लें और पान चबाते हुए एक माला निम्न मंत्र का जाप करें एवं माँ शक्ति से उनके पुत्र भैरव की कृपा हेतु प्राथना करें । पान चबाते हुए उसके रस को घुटते हुए भावना करें कि इस रास का प्रभाव , भैरव की शक्ति रूप हैजो आपके शरीर में प्रवाहित हो रहा है ।
ॐ ऐं ॐ ह्रीं ॐ क्लीं ॐ चामुण्डायै ॐ विच्चे ।।
11 दिन पूर्ण होने के उपरांत मूल मंत्र से हवन करें तथा किसी भी भैरव मंदिर में क्षमता अनुसार दान पुण्य करें ।
अंत में जो त्रिसूल आपने चाहे लोहे का या फिर कागज पर लाल रंग से बनाया था उसको अपने पूजाघर में रखें और रोज एक माला मन्त्र का जाप करें ।
भैरव आपका कल्याण करे। जय माता। दी ।
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